" समाज को लेखाकार की उपयोगिता "
पृथ्वी से बहुत दूर पहुँच कर एक जहाज दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है । सुरक्षा के लिए किसी प्रकार की सहायता उपलब्ध होने की कोई आशा नजर नही आती । जहाज के कप्तान को यकीन हो जाता है कि जहाज ,यात्रियों व कर्मचारियों सहित दो घन्टे मे डूब जायगा ।
दुर्भाग्यवश जहाज मे कुछ विषेशज्ञ जैसे - प्रशासक , राजनीतिज्ञ , डाक्टर , इन्जीनियर , अर्थशास्त्री , वैज्ञानिक , दार्शनिक , समाजशास्त्री , कवि , लेखाकर व नई पीढ़ी का विद्यार्थी यात्रा कर रहे थे ।
कप्तान ने इन सभी विषेशज्ञों को एकत्रित किया व कहा कि वो केवल एक.ही व्यक्ति का जीवन बचा सकता हैं । अतः उसने प्रत्येक विषेशज्ञ को दस मिनिट का समय देकर ,उससे समाज को अपना योगदान बताने को कहा , जिससे वह यह तय कर सके कि समाज को किसकी आवश्यकता सबसे अधिक है उसी के जीवन की रक्षा की जाय ।
एक-एक कर सबने समाज मे अपनी उपयोगिता के बारे में बताया ।
( लेखाकार -- लेखा अधिकारी , महालेखाकार , चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट तथा इस विषय के अन्य ज्ञाता ,चाहे उन्हे किसी भी नाम से पुकारा जाता हो , सब का प्रतिनिधित्व कर रहा था । )
अन्त मे लेखाकार की बारी आई --
आपने अभी -अभी तथाकथित विषेशज्ञों तथा उनके द्वारा समाज में उनके योगदान के बारे मे सुना । परन्तु क्या ये सच नही है कि तथाकथित विषेशज्ञ बिना मेरे सहयोग के एक दिन भी अपना काम नही कर सकते । -- बिना मेरे सहयोग के क्या कोई अर्थशास्त्री , कोई योजना बना सकता है ?
-- क्या कोई राजनीतिज्ञ बिना मेरे सहयोग के संसद का सामना कर सकता है ?
-- क्या कोई प्रशासन बिना मेरे सहयोग के अपना प्रशासन का कार्य सफलतापूर्वक कर सकता है ?
कप्तान साहब आप समाज के प्रति मेरा योगदान जानना चाहते हैं न !
मेरा कहना है कि समाज के किस घटक के प्रति मेरा योगदान नही है ?
मेरा योगदान समाज की सबसे छोटी इकाई ' परिवार ' से लेकर बड़ी - बड़ी संस्थाओं तक को है । यहाँ तक की देश का प्रशासन भी मेरे बिना नहीं चल सकता ।
परिवार के प्रति मेरा योगदान ,आपस मे मधुर संबन्ध बनाए रखने के लिए होता है । आपने प्रायः देखा होगा , देखा ही क्यों भुगता भी होगा कि जब माह की दस ( १० ) तारीख को ही पत्नी पति को सूचित करती है कि तनखा की राशि समाप्त हो गई है , तो पति का चेहरा देखने लायक हो जाता है , वह गुस्से मे कहता है , दस दिन मे ही सब राशि कैसे समाप्त हो गई , अभी तो घर मे कोई बड़ा खर्चा भी नहीं हुआ ?
अब पत्नी का मुखडा़ दर्शनीय हो जाता है , वह मुँह फुलाकर कहती है -" मुझे क्या पता , क्या पैसे मैं खा गई ? " कहा नहीं जा सकता कि इस तरह की अप्रिय वार्ता का आदान -प्रदान कितने समय तक चलता है और इसका अन्त कहाँ होता है ? इस तरह की परिस्थितियों से गुजरने वाले ही इसे समझ सकते हैं। ।
कप्तान साहब - क्या विस्तृत लेखे रखे बिना ,आज के उद्योग एक दिन भी चल सकते है ?
-- क्या बिना विस्तृत लेखे रखे -- डाक्टर , इन्जीनियर , संसद सदस्य , अर्थशास्त्री , , प्रशासक , वैज्ञानिक , अपना वैतन पा सकते है ?
-- क्या विस्तृत लेखे रखे बिना विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति नियमित रूप से मिल सकती है ?
-- क्या बिना लेखे की सहायता के दार्शनिक , कवि , लेखक , समाज शास्त्री को अपने गुजारे के लिए नियमित रूप से "धन " प्राप्त हो सकता है ।
-- क्या बिना समुचित लेखे रखे व्यापार लाभ मे चल सकता है ?
--क्या बिना लेखे रखे सरकार को आयकर नियमित रूप से मिल सकता है ?
कप्तान साहब , क्या बिना लेखे व रोकड़ बही के एक दिन भी शासन चल सकता है ?
-- क्या बिना पिछले वर्ष के लेखे के ' शासन का बजट ' बन सकता है ?
यदि विभिन्न संस्थाओं में छोटे छोटे उत्सवो के लेखे न रखे जाए तो संयोजको को बहुत कठिनाईयों का सामना करना पडेगा । समाचार पत्रों मे सुर्खियों मे छपेगा कि ' फलाँ संस्थान ' में हजारों रुपयों का गबन ' । अधिकारियों के निलम्बन की सम्भावना । संबन्धित अधिकारियों की रातो की नींद हराम ।
यदि कोषालयो मे दो रुपयों का भी अन्तर होता है तो उसको मिलाने मे कर्मचारियो को रात भर काम करना पड़ता है । यदि बैंक के खातों मे दस. रुपयों का अन्तर आ जाए तो उसे मिलाने के लिए over time मे बीस रुपये व्यय करने पड़ते हैं ।
कप्तान साहब , क्या आप जानते कि अपने देश के संविधान मे डाक्टर , इन्जीनियर , कवि ,समाजशास्त्री आदि का उल्लेख है या नही ?
' नही है ' । क्योकि समाज मे उनका योगदान नगण्य है ।
परन्तु सभी देशों के संविधान मे यह उल्लेख है कि शासन द्वारा व्यय की गई राशि के समुचित लेखे रखे जाएँ। कहने की आवश्यकता नही कि इस कार्य के लिए किसकी आवश्यकता होगी ।
अत: आप समझ सकते है कि मुझे नही बचाया गया तो देश व समाज की कितनी हानि होगी ।
कप्तान साहब , आपने विभिन्न क्षेत्र के लोगों को भूखे मरते सुना होगा । परन्तु कभी किसी लेखाकर के भूखे मरने के बारे नही सुना होगा ।
कप्तान साहब , लेखाकर किसी महाविद्यालय में तैयार नही किए जाते । लेखाकार , अनुभव अर्जित करके विषेशज्ञ बनते हैं। मै भी 35 वर्ष का अनुभव इकट्ठा करके विषेशज्ञ बन पाया हूँ ।
आए दिन समाचार पत्रो मे बड़े - बड़े गबन के समाचार छपते रहते हैं । यह भी यही दर्शाता है कि देश मे लेखाकारों की बहुत कमी है ।
अत: मेरा यही कहना है कि यहाँ उपस्थित सज्जनों में से समाज को मेरी सेवाओं की सबसे ज्यादा आवश्यकता है । इसलिए इस जीवन रक्षक पेटी का हकदार केवल मै ही हूँ ।
मै आपको याद दिला दूँ कि आप जो एक मोटी तनखा हर माह नियमित रूप से प्राप्त करते हैं वह केवल लेखाकार के कारण ही सम्भव हो सकी है । यदि मुझे नहीं बचाया गया तो वेतन या पेंशन का भुगतान आपको या आपके परिवार को संभव नही हो सकेगा ।
आगे आप समझदार हैं।
ओमप्रकाश पाटनीवाल
ग्वालियर ( म.प्र. )
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